कैंसर किलर : – हल्दी – गौ मूत्र – पुनर्नवा ।

कैंसर किलर : – हल्दी – गौ मूत्र – पुनर्नवा ।



हल्दी में एक तत्व पाया जाता हैं जिसको करक्यूमिन कहा जाता हैं जो कैंसर को रोकने में रामबाण हैं। अगर आपको कैंसर का डर हैं या इस की शुरुवात भी हो गयी हैं तो आप घबराइये नहीं आप निरंतर हल्दी का सेवन अपने भोजन में करे।
90 % मरीज कैंसर से नहीं मरते बल्कि उसके इलाज से मर जाते हैं ये एक आश्चर्यजनक तथ्य हैं। अगर किसी मरीज ने अपना कीमो करवाना शुरू कर दिया हैं तो फिर उसका नार्मल होना बहुत मुश्किल हो जाता हैं। और उस पर फिर ये प्रयोग ना करे।
राजीव दीक्षित भाई ने ऐसे कई मरीज सही किये थे जिनको कैंसर था। और उन्होंने जो देसी इलाज अपनाया वह था भारतीय गौ मूत्र, हल्दी और पुनर्नवा ।
अगर आप या किसी अन्य को ऐसी कोई शिकायत हैं तो आप भी इस घरेलु नुस्खे से स्वस्थ्य पा सकते हैं।
अब ये दवा बनानी कैसे हैं।
देसी गाय ये आपको अपने आस पड़ोस में या गौशाला में मिल जाएगी, इसमें भी विशेष हैं काली गाय और ये ध्यान रखे के गाय गर्भवती ना हो, बेहतर होगा आप वो गाय का मूत्र लीजिये जो अभी छोटी बछड़ी हैं। अब इस एक गिलास गौ मूत्र में 1 चम्मच हल्दी डाल कर इसको धीमी आंच तक 10 मिनट तक उबाले, उबलने के बाद आप इसको रूम टेम्परेचर पर ठंडा कर ले, बस दवा तैयार। इसको छान कर आप किसी कांच की बोतल में डाल कर रख ले। अब हर रोज़ सुबह खली पेट और रात को सोते समय बिलकुल आखिर में और दिन में कम से कम 3 बार 10-10 मिली ले। और निरंतर अपना चेक अप करवा ले आप देखेंगे के आपकी कैंसर की बीमारी चमत्कारिक रूप से सही हो रही हैं।
अगर आप इसको और प्रभावी बनाना चाहते हैं तो आप इस पेय में एक औषिधि आती हैं जिसका नाम हैं पुनर्नवा, यह भी १ चम्मच इस में डाल कर उबाले। ये आपको किसी भी पड़ोस के आयुर्वेद या पंसारी की दुकान से मिल जाएगी।
और अगर आप कैंसर से बचना चाहते हैं या आप चाहते हैं के आप कभी इसकी चपेट में ना आये तो आप नियमित रूप से हल्दी का सेवन अपने भोजन में करे।
दूसरा प्रयोग – हल्दी – गेंदे के फूल – गौ मूत्र
देशी गाय का मूत्र लीजिये (सूती के आठ परत कपड़ो में छान लीजिये ) , हल्दी लीजिये और गेंदे के फूल लीजिये । गेंदे के फुल की पीला या नारंगी पंखरियाँ निकलना है, फिर उसमे हल्दी डालकर गाय मूत्र डालकर उसकी चटनी बनानी है।
अब चोट का आकार कितना बढ़ा है उसकी साइज़ के हिसाब से गेंदे के फुल की संख्या तय होगी, माने चोट छोटे एरिया में है तो एक फुल, काफी है चोट बड़ी है तो दो, तीन,चार अंदाज़े से लेना है। इसकी चटनी बनाके इस चटनी को लगाना है जहाँ पर भी बाहर से खुली हुई चोट है जिससे खून निकल जुका है और ठीक नही हो रहा। कितनी भी दावा खा रहे है पर ठीक नही हो रहा, ठीक न होने का एक कारण तो है डाईबेटिस दूसरा कोई जैनेटिक कारण भी हो सकते है।
इसको दिन में कम से कम दो बार लगाना है जैसे सुबह लगाके उसके ऊपर रुई पट्टी बांध दीजिये ताकि उसका असर बॉडी पे रहे; और शाम को जब दुबारा लगायेंगे तो पहले वाला धोना पड़ेगा ! इसको गोमूत्र से ही धोना है डेटोल जैसो का प्रयोग मत करिए, गाय के मूत्र को डेटोल की तरह प्रयोग करे। धोने के बाद फिर से चटनी लगा दे। फिर अगले दिन सुबह कर दीजिये।
यह इतना प्रभावशाली है इतना प्रभावशाली है के आप सोच नही सकते देखेंगे तो चमत्कार जैसा लगेगा।
और ये याद रखे के  गौ मूत्र लेना हैं अर्क नहीं।
तीसरा प्रयोग
कैंसर के रोगी को दिन में 4 बार 2 पत्ते पपीते के लेकर इसमें 1 चम्मच अजवायन डालके 2 गिलास पानी में आधा रहने तक पकाएं, और इसको पियें. एक इसी उपचार से अनेकों कैंसर के रोगियों को बहुत लाभ होता है.
परहेज
कैंसर सेल्स की मुख्य खुराक ग्लूकोस होती है, इसलिए चीनी, चाय, और गेंहू तुरंत बंद कर दें. मौसमी फल और सब्जियां रोगी को ज़रूर देवें.

आयुर्वेद में ऐसे और पदार्थ भी हैं जो कैंसर किलर हैं जिनमे तुलसी, गेंहू के जवारे विशेष हैं।

Comments

Popular posts from this blog

अपेंडिक्स अर्थात आंत्रपुच्छ शोथ (अपेण्डिसाइटिस) का रामबाण इलाज।

🌺ल्यूकोप्लेकिया (leukoplakia)- एक प्रकार का खुजली -रोग🌺